भारत के अंदर गवर्नमेंट जॉब और गवर्नमेंट पब्लिक सेक्टर के अंदर रिवॉल्यूशन या उनके स्ट्रक्चर में बदलाव की क्यों जरूरत है?
गोवा के अंदर नवंबर 2022 मैं Pramod sawant जो चीफ मिनिस्टर ऑफ गोवा है उन्होंने गवर्नमेंट जॉब में एंट्री से पहले 1 साल का प्राइवेट सेक्टर का एक्सपीरियंस कंपलसरी यानी मैंडेटरी कर दिया.
गोवा की सरकार द्वारा यह कदम उठाने का एक ही मतलब था कि सिर्फ एग्जाम पास करने से गवर्नमेंट जॉब या गवर्नमेंट सेक्टर के अंदर एंट्री नहीं मिलेगी परंतु उसके लिए प्राइवेट सेक्टर के अंदर काम भी करना पड़ेगा ताकि जब गवर्नमेंट जब के अंदर एंट्री होगी तब आने वाला व्यक्ति एक्सपीरियंस के साथ आएगा.
हमारे देश के अंदर गवर्नमेंट जॉब की तैयारी करने के लिए लोग सालों साल लगा देते हैं परंतु उसका प्रैक्टिकल एक्सपीरियंस नहीं हो पाता जिसकी वजह से जब जब लग भी जाती है तब वह सिर्फ एक एंप्लॉय बनकर रह जाते हैं लंबे समय का शिकार होने के साथ भ्रष्टाचार और Unethical Activity के अंदर आ जाते हैं उसकी वजह से भारतीय नगरी को का भरोसा सरकार की सेवाओं में से उठ जाता है और बाद में लोकतंत्र पर भी सवाल उठाते हैं.
Government employee निष्क्रिय होने की वजह से सरकार की सेवाएं और सरकार के कई सारे प्रोजेक्ट बहुत ही धीमी गति से आगे बढ़ते हैं जबकि उसकी कंपैरिजन के अंदर प्राइवेट सेक्टर के प्रोजेक्ट आसमान छूने लगते हैं.
आज के यह आर्टिकल के अंदर हम देखेंगे की सरकार की सेवाएं जो हम उपयोग में लेते हैं उसके अंदर कौन सी समस्याएं हैं और यह सरकार की सेवा के अंदर जो समस्याएं हैं उनका समाधान यानी रिफॉर्मेशन लाने के लिए कौन से उपाय हो सकते हैं.
Government services भारतीय सरकार की सेवाओं के अंदर कौन सी समस्या है?
यह सालों के अंदर भारत की अर्थव्यवस्था एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था बनाकर दुनिया के सामने आ रही है और तेजी से आगे बढ़ रही है पर उसके अंदर प्राइवेट सेक्टर का बहुत बड़ा योगदान है जबकि पब्लिक सेक्टर उसमें संघर्ष कर रहा है और इस वजह से एक कहावत भी है कि
"India Grows at night
While the government sleeps".
ऊपर दी गई कहावत के अंदर सरकार का मतलब यहां पर पब्लिक सेक्टर जो निष्क्रिय है उसका है.
पब्लिक सेक्टर के अंदर नौकरी करने वाले व्यक्ति को पता रहता है कि आने वाले 30 से 35 ईयर तक उसकी जो जॉब है वह सेफ है और सीकर है यह जॉब के अंदर कोई प्रेशर नहीं रहता है.
पब्लिक सेक्टर की जॉब के अंदर कोई लाभ नहीं दिया जाता नए कामों के लिए जैसे प्राइवेट सेक्टर के अंदर अगर आप कोई इनोवेटिव आइडिया लेकर या इनोवेटिव कम से आगे बढ़ते हैं तो कंपनियां आपको प्रमोट करती है और लाभ देती है जबकि यह बात गवर्नमेंट सेक्टर के अंदर नहीं है उसे वजह से गवर्नमेंट एंप्लोई का जज्बा खत्म हो जाता है.
इस वजह से गवर्नमेंट एंप्लोई का सपना तो पूरा हो जाता है कंफर्ट जोन के अंदर काम करने का परंतु हमारे देश को तरक्की के लिए अलग से प्लानिंग और योजना बनानी पड़ती है.
एक और समस्या पब्लिक सेक्टर के अंदर काम करने में यह है कि यहां पर ऑफिसर्स की संख्या तो बढ़ती जाती है पर उसके अंदर में जो काम रहता है वह काम होता जाता है यह बात को हम उदाहरण के रूप में देखे तो अप यानी उत्तर प्रदेश के अंदर डीजीपी की संख्या 14 ऑफिसर और एडिशनल डीजीपी ऑफिसर्स की संख्या 42 है जो पूरे यूपी यानी उत्तर प्रदेश को लो और ऑर्डर के अंदर मेंटेन करते हैं
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि उत्तर प्रदेश के अंदर एक समय पर एक ही आईजी यानी इंस्पेक्टर जनरल पूरे उत्तर प्रदेश के लॉ और ऑर्डर को मेंटेन करते थे.
बहुत संख्या के अंदर डीजीपी होने की वजह से हर एक ऑफिसर अपनी अच्छी पोस्टिंग के लिए राजनीति का सहारा लेता है और उससे भारत के आम आदमी को जो सर्विस मिलनी चाहिए वह मिलती नहीं है.
वर्ल्ड बैंक दुनिया भर की जो भी सिविल सर्विसेज है उसको मॉनिटर करती है और जो मॉनिटर की प्रक्रिया है वह Independence, Quality of policy formulation and implementation का ख्याल रखा जाता है.
उसके अंदर के 2014 के दाता के अनुसार भारत को 45% के दायरे में रखा गया था यहीं पर 1996 के दाता के अनुसार भारत को 55 % के दायरे में रखा गया था.
उपरोक्त दिए गए डाटा के अनुसार समय के साथ भारत की सिविल सर्विसेज की सेवाएं लगातार राजनीति के दबाव के अंदर खराब पॉलिसी की वजह से और इंप्लीमेंटेशन नहीं होने की वजह से नीचे गिरती जा रही है.
ऊपर दी गई समस्या के अलावा गवर्नमेंट सर्विसेज के अंदर corruption and bureaucracy की समस्या भी बड़ी है.
अमेरिका के फॉर्मर प्रेसिडेंट बराक ओबामा ने अपनी किताब में लिखा था कि भारत के अंदर जेनुइन इकोनामिक ग्रोथ होने के बावजूद भारत की संकीर्ण मानसिकता वाला देश है जिसकी वजह से bureaucracy की समस्या है.
हालांकि ऊपर दिए गए बराक ओबामा के बयान को हम पूरी तरह समर्थन नहीं देते फिर भी कहीं दायरे तक यह बात सही है.
bureaucracy के अंदर बहुत बड़ी समस्या है भारत के अंदर इंदिरा गांधी और नरेंद्र मोदी जैसे बड़े नेता भी अभी तक यह प्रॉब्लम का सॉल्यूशन नहीं ला पाए.
देश को चलाने के लिए कुछ लोगों को पावर दी जाती है और यही पावर का उपयोग गवर्नमेंट ऑफिसर अपने लिए उपयोग करते हैं. पावर में रहने वाले यही ऑफिसर वास्तव में इस तरह का फ्रेमवर्क बनाते हैं जिसमें आम आदमी भ्रष्टाचार करने पर मजबूर हो जाता है और यहां से ही भ्रष्टाचार की शुरुआत होती है.
उदाहरण के तौर पर देखें तो भारत के अंदर छोटे आरटीओ ऑफिस के अंदर ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के लिए आपको जो प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है उसमें कई Loop Holes बनाकर ऑफिसर भ्रष्टाचार करते हैं और उसी की वजह से किसी को ड्राइविंग नहीं आते हुए भी ड्राइविंग लाइसेंस निकल जाता है. और ऐसे करप्शन भारत के अंदर हर एक लेवल में रहते हैं.
दुनिया के अंदर होने वाले एक्सीडेंट में जो मृत्यु 10 लोगों की होती है उसमें से एक व्यक्ति भारत का होता है यह उदाहरण हमें सोचने पर मजबूर करता है कि भारत के अंदर गवर्नमेंट पॉलिसी बदलने की जरूरत है.
Digitalization के यह युग में गवर्नमेंट ऑफिसर करप्शन के लिए लूप होल्स निकाल लेते हैं 2022 में सिर्फ सेंट्रल गवर्नमेंट के हर ऑफिसर्स और एंप्लॉई के खिलाफ 115203 Cases corruption के लिए रजिस्टर किए गए थे.
गवर्नमेंट सिस्टम के अंदर करप्शन के लिए जिम्मेदार Opaque सिस्टम है यानी जो भी योजनाएं बनती है और जो भी कार्य गवर्नमेंट सिस्टम के अंदर होता है वह ट्रांसपेरेंट नहीं होता.
CIC (Central information commission) के दाता के अनुसार वन थर्ड ऑफ गवर्नमेंट मिनिस्टर्स एंड एम्पलाइज जो भी बेसिक इनफार्मेशन होती है उसको शेयर करना नहीं चाहते.
भारत सरकार में गवर्नमेंट मिनिस्ट्री नीचे दिए गए जानकारी को साजा नहीं करना चाहती.
1. Decision making process
2. Senior Officials foregeion Visit
3. Minites of Department meeting
4. Transfer Policy
उसके अलावा कहीं और समस्याएं हैं जिस वजह से रिफॉर्मेशन की जरूरत है.
भारतीय सेवाएं और इंडियन सर्विस के अंदर जरूरी बदलाव
2022 के अंदर अग्निपथ स्कीम के तहत आम फोर्स को रिक्वायरमेंट किया गया और नई स्कीम के तहत भारती की गई उसके बाद यह मांग उठी की ऑल इंडिया पब्लिक सर्विस के अंदर भी अग्निपथ जैसी स्कीम लाई जाए खास तौर पर bureaucracy ke andar.
सभी गवर्नमेंट ऑफिसर्स की जॉब और उनके सारे काम को स्ट्रिक्टली फॉलो किया जाना चाहिए एक बार ऑफिसर्स अपने नौकरी के 15 वर्ष कंप्लीट करने के बाद 25 ईयर और उसके बाद 30 ईयर पर मॉनिटर किया जाना चाहिए.
यह बीच में जो भी ईयर के इंटरवल में रिव्यू लिया जाता है वह काफी स्ट्रीक होना चाहिए और उसके अंदर पहले स्टेज में 25% ऑफिसर को सेकंड यानी दूसरे स्टेज के अंदर 10% ऑफिसर्स को और थर्ड यानी तीसरे स्टेज के अंदर 5% ऑफिसर्स को निकाल देना चाहिए.
यह जो प्रक्रिया होगी ऑफिसर्स को निकालने की उसके अंदर महत्व का पैरामीटर जो रहेगा वह poor performance , charges of corruption , misconduct of a serious natural and physically unfit जैसे फैक्टर रहेंगे.
इससे ऑफिसर्स परफॉर्मेस ओरिएंटेड हो जाएंगे अगर परफॉर्मेंस खराब रहेगा तो जब चली जाएगी उसकी वजह से ऑफिसर्स नई स्किल और इनोवेटिव आइडिया पर काम करेंगे.
टॉप गवर्नमेंट ऑफिसर की जगह पर हमें लैटरल एंट्री (Lateral Entry) करनी चाहिए मतलब कई सेक्टर के अंदर जो इंसान स्पेशलिस्ट है जैसे कि उसको ग्लोबल उसे सेक्टर के साथ जुड़ी हर एक बात को पता रखना है और उसके अंदर वह काबिलियत है तो उसको गवर्नमेंट ऑफिसर्स की जगह पर लाना चाहिए थोड़े टाइम के लिए.
उदाहरण के रूप में इन्फोसिस के पूर्व ऐसी हो Nandan Nilekani है जब उनको गवर्नमेंट कैबिनेट के रैंक की पोजीशन ऑफिसर की तहत दी गई तब गवर्नमेंट के साथ उन्होंने मिलकर आधार कार्ड, यूपीआई, जीएसटी जैसे बड़े फ्रेमवर्क डेवलप किया जो आज हमारे देश के विकास के लिए बहुत बड़ा योगदान दे रहे हैं.
गवर्नेंस रैंकिंग के मामले में टॉप कंट्री की बात करें तो वहां पर साउथ कोरिया आता है और उसके बाद उस यानी यूनाइटेड स्टेट 51 नंबर में आता है जबकि भारत की पोजीशन 68 नंबर की है हमें याद रखना चाहिए कि हमारा गोल नंबर वन यानी साउथ कोरिया होना चाहिए ना कि अमेरिका क्योंकि जब भारत के रैंकिंग नंबर वन पर पहुंचेगी तब हम पूरी ताकत के साथ भारत की पब्लिक सर्विस को बेहतर बनाकर भारत की आम आदमी को पूरी तरह से गवर्नमेंट सर्विस दे पाएंगे जय हिंद जय भारत जय संविधान.